इक तू ही नहीं है “क़िस्मत में”... "बाक़ी कमी कुछ भी नहीं ।
इक तू ही नहीं है “क़िस्मत में”... “बाक़ी कमी” कुछ भी नहीं । तुझे ‘सोच-सोच’ के “सँवरा” हूँ, जब ‘टूट-टूट’ के “बिखरा” हूँ ! इतना कुछ तेरे लिए “सहा” कि अब.. इन आँखों की “नमीं” कुछ भी नहीं । इक तू ही नहीं है “क़िस्मत में”... “बाक़ी कमी” कुछ भी नहीं । तेरी इबादत पे सारी दुनिया “वारी” है, इस सारे ज़माने में मुझको.. केवल ‘तू’ प्यारी है। तेरे लिए “लड़-भिड़” जाऊँ हर इक ‘शय’ से हर दफ़ा, मेरे लिए इससे “बड़ी बंदगी” कुछ भी नहीं । इक तू ही नहीं है “क़िस्मत में”... “बाक़ी कमी” कुछ भी नहीं । Would you like to be friends with “Ankur” just click on this Picture 👇 तेरी ही “यादें” ... तू ही “सुकूँ”, ख़्वाहिश मेरी... तेरा “बनूँ” ! हर ‘जतन’ करूँगा पाने को.. “आख़िर” मैं तुझको पाऊँगा, जो तेरे बिना “रह-रह” कटे.. “वो ज़िन्दगी” कुछ भी नहीं । इक तू ही नहीं है “क़िस्मत में”... “बाक़ी कमी” कुछ भी नहीं । - सदैव से आपका - ...