माँ भारती क़ा वीर पुत्र "चन्द्र शेखर आज़ाद"

कैसा उन्माद उठा, उसके भीतर, आजाद-भारत-स्वप्न चिंतन में, वो मौत से भी लड़ गया। "आजाद" था 'आजाद' वो "आजाद-हमको" कर गया। उस सोच से 'क़ि हम कमजोर हैं', क़ि हम सक्षम नहीं हैं"। ऐसा सोचना व्यर्थ है, ये उसने समझाया। अकेला था, 'जी-भरकर' लड़ा... बदन पर हजारों जख्म खाए, वतन की खातिर जीने की इच्छा, उसके जख्म दबा न पाए। मातृभूमि की रज समेटी आखिर अपनी बाँहो में, चेहरे पे मली, मस्तक पर लगाई, कुछ ओढ़ी "माँ का आँचल" समझ, कुछ मातृभू के प्रेम में हवा में उड़ाई। फिर आखिरी 'जयघोष' किया, अपनी बन्दूक उठाई। बची आखिरी गोली डाली, अपनी मिटटी से गुहार लगाई। हे माँ, मुझे आश्रय देना, मैं तेरी शरण में आता हूँ। माफ़ करना माँ मुझे अब मैं अपना अंतिम वचन निभाता हूँ। बेड़ियों में जकड़ी माँ का दर्शन मैं "पाप" समझता हूँ। ऐसी हालत में रहकर के जीना अभिशाप समझता हूँ। "आज़ाद को कोई चाह नहीं.. क़ि अब ये जीवनदान मिले।" "मातृ भारती पुण्य वत्सला.. मुझे अभय का दान मिले।" जिस "रज...