कब तक द्वन्द सम्हाला जाए, युद्ध कहाँ तक टाला जाए।
कब तक द्वन्द सम्हाला जाए,
युद्ध कहाँ तक टाला जाए ।
वंशज है महाराणा का..
चल फेंक जहाँ तक भाला जाए ।
अब मनोकामना पूरी कर दो,
रक्त चटाकर तलवारों को..
महारुद्र को शीश नवाकर,
नव अश्वमेध कर डाला जाए।
निरीहों को जीवन देना,
परन्तु पृष्ठ-आघात अक्षम्य रहे।
प्रखर समर के बीचोबीच..
ऐसा रणघोष बजा डाला जाए।
समस्त धरा कुरुक्षेत्र बना,
इतनी सामर्थ्य जुटा फिर से।
असुरों का सर्वस्व् मिटा, ताकि
कहीं..पुनः अधर्म न पाला जाए।
हे पार्थ ! अब गाण्डीव उठा,
लक्ष्य पे दृष्टि अड़ाकर रख।
प्रथम ध्वनि संकेत मिले...और
लक्ष्यभेद कर डाला जाए।
"अंकुर" शौर्यगति पा जाए...
अथवा परिणाम विजय माला आए।
बस वीरों की पंक्ति सुशोभित हो..
इतना नाम कमा डाला जाए।
-सदैव से आपका-
" अंकुर "
For More information-
Open Google.com and search "Ankur Singh Rathod"
Or you can get in touch with him on Facebook @
Facebook.com/ankurthakur21
https://youtu.be/5G2w9fAyDBE
विशेष सूचना : युवराज 'अंकुर' (आर्यण ठाकुर) अपने बाल्यकाल से ही ओज की तेज-तर्रार रचनाऐं लिखते व विभिन्न राष्ट्रीय मंचो पर वाचन करते आ रहे हैं ।
उपरोक्त कविता का "शीर्षक" ओज के एक अति-वरिष्ठ व 'अंकुर' के सर्वाधिक पसंदीदा भिन्न-भिन्न राष्ट्रीय पुरस्कारों से अलंकृत कवि आदरणीय श्री वाहिद साहब के एक प्रसिद्ध रचनांश से प्रेरित है ।
"अंकुर ने विगत दिनों मुम्बई में एक स्थानीय कार्यक्रम के दौरान अपने विचार रख अवगत कराया कि उनकी यह रचना उसी 'विशाल पीपल' को जिसकी प्राण-वायु से एक नन्हा सा 'अंकुर' पुष्पित व पल्लवित हुआ, को आदर सहित समर्पण से अधिक कुछ नहीं । इसे वाहिद साहब की प्रेरणा से उत्पन्न उनके "एकलव्य" की ओर से भेंट माना जाए, एक शिष्य का प्रणाम समझा जाए।"
Bahut hi badhiya.
ReplyDeleteJai Rajputana...!!!
उत्साह वर्धन हेतु आपका आभार
Deleteरक्त में गर्मी ने पुनः जन्म ले लिया हैं।
ReplyDeleteऐसे ही लिखते रहो बंधु।
।।जय श्री राम।।
धन्यवाद
DeleteAap log to mrte bhi h desh ke liye n likhte bhi wahi feelings se desh ke liye hai keep it up
ReplyDeleteसहृदय धन्यवाद
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ReplyDeleteVery good officer jii
ReplyDeleteek no, awesome
ReplyDeleteKya likh diye ho yr....salute to your thoughts...✌
ReplyDeleteVery famous poem of a Muslim poet👌👌
ReplyDeleteDinkar ki hai Muslim ki nhi
Deleteमुस्लिम। साला कुछ भी मत हगा करो। ये internet की दुनिया है।
Deleteकवि वाहिद ने बताया की 1994 में कश्मीर के सन्दर्भ में यह कविता लिखी थी और मेरी पुस्तक अपनी नी कबिरा बानी में प्रकाशित हुई, जिसका विमोचन 10 सितम्बर 1998 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई जी ने लखनऊ में किया था।
DeleteWaaah
ReplyDeleteवाह क्या लिखा है। पढ़ने मात्र से साहस मिलता है। आपको बहुत बधाई और माँ सरस्वती की आपके ऊपर कृपा बनी रहे।
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ReplyDeletekya baat hai, Matlab shabd nahi mil pa rahe Bhaisaab.
ReplyDeleteitani chhoti umra me kafi gahera likha hai jeise koi mature kavi ho.
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ReplyDeleteयह किसी और की रचना है
किसान सत्ता डेस्क, लखनऊ। राज्यसभा में जैसे ही कल गृहमंत्री अमित शाह ने धारा 370 हटाने की बात कही, सोशल मीडिया पर तू है राना वंसज फेंक जहाँ तक भाला जाये शीर्षक से यह कविता बड़ी तेजी से वायरल हुई। सोशल मीडिया पर हजारों लोगों ने यह कविता शेयर की। प्रसिद्ध कवि डॉ कुमार विश्वास ने अपने ट्विटर पर लिखा – भारत माता के माथे की पुरातन पीर हरने के लिए सरकार का आभार! हर नागरिक से अनुरोध है कि दशकों से लम्बित इस शल्यक्रिया के दौरान देश के साथ रहें! ये ऐतिहासिक क्षण है।
“दर्द कहाँ तक पाला जाए,
युद्ध कहाँ तक टाला जाए,
तू भी है राणा का वंशज,
फेंक जहाँ तक भाला जाए”
दोनो तरफ लिखा हो भारत
सिक्का वहीं उछाला जाए
किसान सत्ता से बात करते हुए इस कविता को लिखने वाले प्रसिद्द कवि वाहिद अली वाहिद लखनऊ के निवासी हैं। वाहिद अली मूल रूप से कुशीनगर के रहने वाले हैं, वर्तमान में आवास विकास लखनऊ में कार्यरत हैं। वाहिद अली ने बताया कि, आज मै बहुत सरकार के इस फैसले से बहुत खुश हूँ, कश्मीर हमारा मुकुट है, आज माँ भारती का श्रृंगार पूरा हुआ। कवि वाहिद ने बताया की 1994 में कश्मीर के सन्दर्भ में यह कविता लिखी थी और मेरी पुस्तक अपनी नी कबिरा बानी में प्रकाशित हुई, जिसका विमोचन 10 सितम्बर 1998 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई जी ने लखनऊ में किया था। बता दें की, वाहिद अली वाहिद को कई राष्ट्रीय पुरुस्कार मिल चुके हैं।
To Ramdhari singh dinkar kaum hain..?
Deleteसर, मैं निश्चित तौर पर ये मानता हूं कि वो "द्रोणाचार्य धन्य हैं, और धन्य है आप जैसा शिष्य"
ReplyDeleteउनकी वो कविता भी पढी है मैंने और उसका भाव बिना बदले और भी जबरदस्त तरीके प्रस्तुति के लिए आपका जवाब नहीं।
प्रणाम सर।
भाई अंकुश जरा सावधानी से लिखा करो आपने जो एक कविता लिखकर नीचे आपका नाम चिपकाया है तो मैं आपको बता दूं ऊपर की चार लाइने आपकी नहीं है बल्कि शायर वाहिद अली वाहिद की है
ReplyDeleteउम्मीद है आप गलती सुधार देंगे
sidharani chahiye isme koi galat bat nahi h
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