शायद... अब तू मुझको याद नहीं है।





अब किसी से कोई फरियाद नहीं है।
शायद.. अब तू मुझको याद नहीं है।

कहाँ तो... तेरे सिवाय,
मुझे कुछ आता नहीं था।
लाख चाहकर भी.. तेरा ख्याल,
मेरे मन से जाता नहीं था।

अव्वल दर्ज़े का पागलपन था, तेरे लिए
देखो तो..

मैंने ख्वाबों से ख़्यालों तक,
पुल डाल रखे थे।
कितने अजीब-अजीब भरम,
मैंने पाल रखे थे।

 

कभी कभी तो ऐसा लगता था... क़ि
मेरा,
तुझसे,
कुछ खास जुड़ाव है..।
जैसे
मैं अगर आँख हूँ.. तो
तू मेरा ख़्वाब है...।

अगर तेरी मर्जी हो,
तो..
तुझे असलियत से रूबरू करा दूँ..!
एक सीधी-सादी सच्ची बात तुझको बता दूँ..।

अरसों तक,
          सोचता रहा..
           जानता रहा...
सदा से सदा तक, यही मानता रहा...

तुझसे जुदा हुआ, तो.. कुछ कर न जाऊँ ..मैं।
अलग होकर के... कहीं मर न जाऊँ ...मैं।

                    -सदैव से आपका-
                       आर्यण ठाकुर

                   (अंकुर सिंह राठौड़)
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