फिरता हूँ.. दर दर!

तेरी छत से,
              गुजरूँगा.. मैं!
उन टूटे तारों.. सा।

तेरी याद में,
फूट फूट
के
बिखरे..
उन चौबारों...सा।

सुकून तो शायद.. मिलता होगा,
       'दर्द- चुभन' को
                 मेरी गोद में आकर!
बैचेनी और पगलापन..
             सँजो लिया
मैंने उनके रखवारों... सा।



तू उजले शीशे की... रौशन महफ़िल,
       हाल मेरा
             धुंधले आरों..सा।


हालत अपनी क्या समझाऊँ...
अब

फिरता हूँ..
              'दर-दर',

टीस के मारों...सा।




             -सदैव से आपका-
               "आर्यण ठाकुर"
            (अंकुर सिंह राठौड़)

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कब तक द्वन्द सम्हाला जाए, युद्ध कहाँ तक टाला जाए।

रंगती हो तो रंग जाए, माँ की चूनर बेटों के खून से! तुम को फर्क कहाँ पड़ना है... निन्दा करो जूनून से!

कहीं.. इसके बाद, न मिलूँगा... तुझे! तेरे साथ मेरा, ये सफ़र आखिरी है।