और.. वो "बूढ़ा-मास्साब" क्या देता?



अपनी 'सनक़' का,  मैं, हिसाब् क्या देता ?
तेरे सवाल ही गलत थे, ज़बाब क्या देता ?

देख, तेरे लिए सारी रियासत 'सज़दा' करती है...
इससे ज्यादा तुझको कोई नबाब् क्या देता ?

महीनों से जिसके घर 'फ़ांके' पड़ रहे हों..दोस्त।
वो लाकर के तोहफे में रेशमी जुर्राब क्या देता ?

जो 'अगुआ' बन बैठा, वो तो खुद ही नशेड़ी है...
बताओ वो तुमको सुधार कर पंजाब क्या देता ?

"खुश रहना मेरे बेटे" कह कर, जिसने मन से दुआ दी।
अपने "लाड़ले" को, और..वो "बूढ़ा-मास्साब" क्या देता?


तेरी मन्नत पूरी करने मैं खुद ही चला आया हूँ,देख।
इस प्यारी सी मुस्कान से ज्यादा लाज़बाब क्या देता ?

इकलौता आदमी है जिसे बुलबुलों तक से नफरत है।
फिर मँगवाकर "आर्यण" तुझे, सुर्खाब क्या देता ?


                  -सदैव से आपका-
                    "आर्यण ठाकुर"
                 (अंकुर सिंह राठौड़)
 


Comments

Ankur's Most visited poetries

कब तक द्वन्द सम्हाला जाए, युद्ध कहाँ तक टाला जाए।

रंगती हो तो रंग जाए, माँ की चूनर बेटों के खून से! तुम को फर्क कहाँ पड़ना है... निन्दा करो जूनून से!

कहीं.. इसके बाद, न मिलूँगा... तुझे! तेरे साथ मेरा, ये सफ़र आखिरी है।