इंसान नहीं है...

"इंसान नहीं है.."



रास्तों पे गुजरने का निशान नहीं है।
लगता है "मंजिल" मेहरबान नहीं है।

मैं भटक रहा हूँ दुनिया में शायद इसलिए..
मेरा, यहाँ, कोई निगहबान नहीं है।

हर आदमी यहाँ किस्मत का मारा है।
पूँछो तो कहता है, परेशान नहीं है।

मेरी शान-ओ-शौकत में वो हमदम था मेरा,
आज बेबसी में मिला, तो पहचान नहीं है।

हजार दिक्कतों में भी एक आंसू नहीं गिरने दिया।
अब लोग कहते हैं, "अंकुर" इंसान नहीं है।


             -सदैव से आपका-
                आर्यण ठाकुर
            (अंकुर सिंह राठौड़)

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