"ताज्जुब"


वो महल रेत का.... टूट गया।
कोई अपना फिर से छूट गया।

बड़ी अच्छी किस्म का "ठग" था वो,
सब बैठे बिठाए ही लूट गया।

पता  है मुझको, वो..  सपना था।
लेकिन.. फिर भी! क्यों टूट गया।


सख्ती जिसकी खुद में मिसाल थी,
"ताज्जुब" हीरा होकर भी फ़ूट गया।

देख पपीहा... मर न जाए कहीं..!
उसकी चोंच से  पानी  छूट गया।

हार मानना "परिंदे" ने नहीं सीखा,
तूफान से बेशक़ घरोंदा टूट गया।



                 सदैव से आपका
                 - आर्यण ठाकुर -
               (अंकुर सिंह राठौड़)

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