"जंग" छिड़ेगी "जंग"
'जंग' छिडेग़ी 'जंग'
अब,
'जंग' छिड़ेगी 'जंग'...!,
'इस-जिस्म' की 'बर्बादी' तक..,
'इस-रूह' की 'आजादी' तक..!
'रुसवाई' से 'तन्हाई' तक..,
'सादगी' से 'बे-हयाई' तक..!
अब,
'जंग' छिड़ेगी 'जंग'..!,
तेरे 'भोले-पन' से,
'मेरी - आवारगी' तक..,
मेरे 'पागल-पन' से,
'तेरी - दीवानगी' तक..!
अब,'जंग' छिड़ेगी 'जंग'...!

" ये
'जिंद'
मेरे हाथ से,
'रेत' की 'मानिन्द'
'खिसकने तक'..,"
और...
'भीगे - तकिये' पे,
'नम'
'चेहरे' की..,
उन
'लाल - सुर्ख'
आँखों के साथ,
"आखिरी
'साँस'
के..
'सिसकने तक'..! "
'चलती रहेगी मेरी - जंग'
'जारी रहेगी मेरी - जंग'
-सदैव से आपका-
'आर्यण ठाकुर'
(अंकुर सिंह राठौड़)
Jung baaj
ReplyDeleteधन्यवाद प्रथम जी
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